External Debt: वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि पिछले गतवर्ष में विदेशी लोन बढ़ गया है अर्थात देश के ऊपर बाहरी कर्ज (External Debt) ज्यादा हो गया हैं | अब सवाल यह हैं की क्या विदेशी लोन बढ़ने से देश की इकॉनमी पर कोई असर पड़ता है और क्या इसका आम आदमी से भी कोई लेना-देना है ? तो वैसे में वित्तमंत्री ने साफ तौर पर यह कहा हैं की हमारा विदेशी कर्ज अभी कंफर्ट जोन में है और इकॉनमी को लेकर चिंता नहीं है |
दरअसल, बात यह हैं की मार्च 2023 तक बाहरी कर्ज बढ़कर 624 अरब डॉलर पहुंच गया है | यह देश के विदेशी मुद्रा भंडार से भी ज्यादा है | पिछड़ा वर्ष 2021-22 के मुकाबले 2022-23 में बाहरी कर्ज 0.9 फीसदी बढ़ा है, जो करीब 5.6 अरब डॉलर है | अगर हम मार्च के आखिर तक का रेश्यो देखे तो पता चलता हैं की भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कुल कर्ज का 92.6 फीसदी था |
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जीडीपी के मुकाबले कहां पहुंचा कर्ज
इंडिया एक्सटर्नल डेब्ट : अ स्टेटस रिपोर्ट 2022-23 का हवाला देते हुए वित्तमंत्री ने यह बताया हैं की जीडीपी के मुकाबले देखा जाए तो विदेशी कर्ज का अनुपात नीचे आया है | मार्च महीने के लास्ट तक तो जीडीपी के मुकाबले विदेशी कर्ज का अनुपात गिरकर 18.9 फीसदी पर आ गया है, जो एक साल पहले तक 20 फीसदी था | यह कुल विदेशी कर्ज में से 79.4 फीसदी तो लांग टर्म का लोन है, जबकि 20.6 फीसदी शॉर्ट टर्म का लोन होता है |
दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति
हमारे देश के वित्तमंत्री का कहना हैं की अगर हम दुसरे मिडिल देशों के मुकाबले भारत की स्तिथि को देखे तो पता चलता हैं की भारत की स्थिति काफी अच्छी हैं | हमारे विदेशी कर्ज में शॉर्ट टर्म लोन काफी कम है, जिससे इकॉनमी पर बोझ नहीं पड़ता हैं | अगर हम विदेशी मुद्रा भण्डार में देखे तो भी कर्ज के मुकाबले करीब 92 फीसदी है और निर्यात, ग्रॉस नेशनल इनकम के मुकाबले भी विदेशी कर्ज बहुत ज्यादा नहीं है |
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विदेशी कर्ज का क्या जोखिम
अगर अर्थव्यवस्था के मुकाबले विदेशी कर्ज में वृद्धि होती हैं तो देश की सॉवरेन रेटिंग पर इसका असर पड़ता हैं | यह खासतौर पर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर ज्यादा प्रभावित करती हैं | अगर विदेशी कर्ज डिफॉल्ट हो गया तो सॉवरेन रेटिंग के साथ और कर्ज मिलने का रास्ता भी बंद हो जाता हैं जिससे की देश की विकास की दर में भी कमी पड़ जाती हैं अर्थात की इसका विकास स्तर धीमा होने लगता हैं |
आम आदमी पर क्या असर
विदेशी कर्ज यानि की एक्सटर्नल डेब्ट को चुकाने में अगर डिफॉल्ट किया गया तो न सिर्फ देश की सॉवरेन रेटिंग पर असर पड़ेगा, बल्कि विदेशी निवेशकों में भी निगेटिव का सन्देश जाएगा और इसके कारण देश का इनवेस्टमेंट गिर सकता है | जिसका प्रभाव उद्योगों और प्रोजेक्ट पर जाएगा और इसके कारण देश में रोजगार के अवसर में कमी हो जायेगी |
इसके अलावा अगर कर्ज डिफॉल्ट हो जाए तो इसे चुकाना बहुत ही महंगा पड़ जाएगा जिससे की सरकारी खजाने में बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा | जिसके कारण सरकार आम आदमी के लिए चलायी जाने वाली योजनाओं में कटौती करने को मजबूर हो सकती हैं |
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सारांश
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